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जन्माष्टमी के अगले दिन विशेष पर्व: गोगा नवमी, जानिए विशेष महत्व पूजा विधि

 

​जन्माष्टमी के पावन पर्व के ठीक अगले दिन, एक और महत्वपूर्ण त्योहार मनाया जाता है - गोगा नवमी। यह दिन विशेष रूप से उत्तर भारत, खासकर राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है।

​किसका जन्म हुआ था?

​गोगा नवमी का त्योहार वीर गोगाजी महाराज (जिन्हें जाहरवीर गोगा या जाहरवीर गोगा पीर भी कहते हैं) के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। वे एक महान योद्धा, सिद्ध योगी और नागों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। उनकी लोककथाएँ और वीरता के किस्से सदियों से चले आ रहे हैं।

​गोगाजी के जन्म की कथा (संक्षेप में)

​कहा जाता है कि गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था। उनकी माता बाछल देवी थीं, जो निःसंतान थीं और संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने गुरु गोरखनाथ जी की कठोर तपस्या की थी। गुरु गोरखनाथ ने प्रसन्न होकर उन्हें एक गुग्गल फल दिया और कहा कि इसे खाने से उन्हें एक वीर पुत्र की प्राप्ति होगी। इसी फल के प्रभाव से गोगाजी का जन्म हुआ, इसीलिए उन्हें गोगाजी कहा गया।

​गोगाजी का जन्म भादों मास की नवमी को हुआ था। वे अपनी वीरता, न्यायप्रियता और सांपों के विष को उतारने की शक्ति के लिए प्रसिद्ध थे। उन्हें 'नागों का देवता' माना जाता है, और यह माना जाता है कि उनकी पूजा करने से सर्पदंश का भय दूर होता है।

​गोगा नवमी का महत्व और पूजा विधि

​गोगा नवमी का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन गोगाजी की पूजा करने से सर्प दोष से मुक्ति मिलती है और घर-परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

पूजा विधि:

  1. सफाई और तैयारी: सुबह जल्दी उठकर स्नान करें। घर और पूजा स्थल की अच्छी तरह से सफाई करें।
  2. गोगाजी की मिट्टी की मूर्ति: गोगाजी की पूजा के लिए मिट्टी से बनी उनकी मूर्ति या तस्वीर का उपयोग किया जाता है। कई जगहों पर लोग घोड़े पर सवार गोगाजी की प्रतिमा बनाते हैं।
  3. पूजा सामग्री: पूजा के लिए रोली, चावल, धूप, दीप, कच्चा दूध, दही, गुग्गल का प्रसाद (विशेष रूप से) और फूल तैयार करें।
  4. पूजा और कथा: गोगाजी की मूर्ति को स्थापित करें और धूप-दीप जलाएं। उनके मंत्रों का जाप करें और गोगाजी की कथा सुनें या सुनाएं।
  5. प्रसाद: पूजा के बाद गोगाजी को विशेष रूप से बने प्रसाद का भोग लगाएं, जिसमें गुग्गल के लड्डू या खीर-पूड़ी शामिल हो सकते हैं।
  6. रक्षासूत्र: इस दिन लोग गोगाजी के नाम का रक्षासूत्र अपने हाथ पर बांधते हैं, जिसे गोगाजी की 'गांठ' कहते हैं। यह उन्हें सर्पदंश और अन्य विपत्तियों से बचाता है।

​गोगाजी के मेले और जन-सैलाब

​गोगा नवमी के अवसर पर कई जगहों पर भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है।

  • मेले का स्थान: सबसे प्रसिद्ध मेला राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में लगता है। यह स्थान गोगाजी की समाधि स्थल माना जाता है। इसके अलावा, गोगाजी के कई अन्य प्रसिद्ध मंदिर हैं जहाँ इस दिन विशाल मेले लगते हैं, जैसे राजस्थान में ददरेवा और हरियाणा में गोगामेड़ी।
  • जनसंख्या: इन मेलों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। विशेष रूप से गोगामेड़ी में लगने वाले मेले में दूर-दूर से लोग अपनी मन्नतें लेकर आते हैं। यहां केवल राजस्थान ही नहीं, बल्कि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि पाकिस्तान से भी भक्त दर्शन के लिए आते हैं। अनुमान है कि केवल गोगामेड़ी मेले में ही 20 से 30 लाख से भी अधिक श्रद्धालु आते हैं।
  • विशेष आकर्षण: इन मेलों में नाच-गाना, लोक-नृत्य, और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। भक्तजन गोगाजी को घोड़े पर चढ़कर या उनके घोड़े के प्रतीक को लेकर श्रद्धापूर्वक यात्रा करते हैं।

​गोगा नवमी का यह त्योहार न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है जो हमें अपनी लोक परंपराओं और वीरता की गाथाओं से जोड़ताहै।

उपरोक जानकारी इंटरनेट पर मौजूद वेबसाइट और खबरों के अनुसार ही आपके समक्ष प्रस्तुत की गई है।

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